मेरे दीपक
मघुर मघुर मेरे दीपक जल,
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर.
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मदुल मोम सा घुल रे मदु तन,
दे प्रकाश का सिंघु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल,
पुलक पुलक मेरे दीपक जल.
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक,
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल,
विहंस विहंस मेरे दीपक जल.
मेरे विश्वासों से द्रुततर,
सुभग न तू बुझने का भय कर,
मैं आंचल की ओट किए हूं,
अपनी मदु पलकों से चंचल,
सहज सहज मेरे दीपक जल.
–महादेवी वर्मा.